मंदाक्रांता सेन की कविताएँ
रास्ता तुम्हारी आँखों के भीतर एक लंबा रास्ता ठिठका हुआ है इतने दिनों तक मैं उसे नहीं देख सकी आज जैसे ही तुमने नज़रें घुमाई मुझे दिखाई दे गया वह रास्ता। बीच-बीच में तकलीफ़ झेलते मोड़ रास्ते के दोनों ओर थे मैदान फ़सलों से भरे खेत वे भी जाने कब से ठिठके हुए थे यह सब तुम्हें ठीक से याद नहीं आँखों के भीतर एक रास्ता पड़ा हुआ था सुनसान और जनहीन। दूसरी ओर कई योजन तक फैला हुआ है कीचड़ वहाँ रास्ता भी व्यर्थ की आकांक्षा-जैसा मालूम होता है कँटीली झाड़ियाँ और नमक से भरी है रेत, कहीं पर भी ज़रा-सी भी छाया नहीं इन सबको पार कर जो आया है क्या तुम उसे पहचानते हो? वह अगर कभी भी राह न ढूँढ़ पाए तो क्या तुम उससे नहीं कहोगे कि तुम्हारी आँखों में एक रास्ता है जो उसका इंतज़ार कर रहा है? -------------------------------------------------- लज्जावस्त्र रास्ते से जा रही हूँ और मेरे वस्त्र खुलकर गिरते जा रहे हैं मैं नग्न हुई जा रही हूँ माँ! और आखि़र घुटनों के बल बैठ जाती हूँ दोनों हाथों से जकड़ लेती हूँ दोनों घुटनों को, छुपा लेती हूँ अपना चेहरा अपना पेट अपना सीना खुली पीठ पर अनगिन